Friday, April 2, 2010

स्वागत उदघोष

अपने ब्लॉग (आयाम) में मैं, रेनू "राजवंशी" गुप्ता अपने मित्रों, बंधू-बांधवों, पाठकों एवं सुधि साहित्य प्रेमियों का स्वागत करती हूँ। इन्टरनेट (अंतरजाल) एवं कंप्यूटर के युग में अपना एक ब्लॉग होना चाहिए यह जोर मुझ पर मेरा मन भी दे रहा था और आत्मार्यजन भी दे रहे थे। सबसे प्रबल आग्रही था मेरा पुत्रवत छोटा भाई अभिषेक गुप्ता, जो कि स्वयं कंप्यूटर साइंस का विशेषज्ञ है। यह ब्लॉग भी उसी ने बनाया है... जिसे मैं साधुवाद देती हूँ।
तो लीजिये ब्लॉग प्रस्तुत है... इसमें आपके मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी एवं आपके सुझावों का स्वागत होगा। लेखन व्यक्ति का शौक भी हो सकता है, आवश्यकता भी हो सकती है, विवशता भी हो सकती है, साधना भी हो सकती है एवं समस्यओं से लड़ने का विकल्प भी हो सकता है। लेखन मेरे लिए क्या है...? यह मैं खोज रही हूँ। लेखन ने मेरे जीवन में अनायास ही प्रवेश किया। वर्ष १९७६ का अप्रैल माह था, मैं परीक्षा की तयारी कर रही थी, विषय अंग्रेजी था, अचानक मेरी कलम हिंदी में चलने लगी और किशोरभावों को व्यक्त करती एक कविता "कैसे हैं वो" लिखी गयी। आज चौंतीस वर्ष हो गए हैं... यह लेखनी निरंतर चल रही है... कविता, संस्मरण, कहानी, लेख, एवं उपन्यास के सोपानों को पार कर लम्बी यात्रा तय की है। अनेक पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों ने मेरी अनेक रचनओं को स्थान दिया है।
मेरे लेखन का जन्म भारत में हुआ था, परन्तु उसका पालन-पोषण एवं सर्वद्धन अमेरिका में हुआ है। विवाह पश्चात पति अरुण के साथ अमेरिका पहुच गयी। पिछले तीस वर्षों से अपने दोनों बेटे निष्काम एवं वेदान्त के साथ हमारा अमेरिका ही निवास है। यह कहूं की भारत मेरी पुण्य भूमि है और अमेरिका मेरी कर्म-भूमि है, तो अन्यथा नहीं होगा।
अमेरिका में बसे भारतियों का जीवन निकट से देखा है, उसे जिया है। साथ ही भारत में अपने आत्मीयजनों का जीवन भी देखती रही हूँ। मेरा लेखन दोनों देशों भारत एवं अमेरिका के बीच झूलता रहा है। तीन वर्ष पूर्व जागरण समाचार पत्र में कॉलम लिखने का अवसर मिला तो दैवी कृपा से लेखनी के अनेकों संस्मरणात्मक लेख निकले और मुझे अपने विचारों को पाठकों के सामने रखने का धरातल मिला। आरम्भ में मेरी लेखनी मूलतः कवितांश ही रही परन्तु कालांतर में वह गद्य लेखन की ओर मुड गयी! दो कविता संग्रह प्रवासी-स्वर एवं प्रवासी-मन एवं दो कहानी संग्रह "कौन कितना निकट" एवं "जीवन लीला" प्रकाशित हुए हैं। उपन्यास "असतो मा सद गमय" एवं "तमसो मा ज्योतिर्गमय" प्रकाशित पुस्तके हैं। इसी कड़ी में "मृत्योर्मा अम्रतम गमय" शीर्षक से कैंसर विषय पर उपन्यास का कार्य चल रहा है। जागरण में प्रकाशित आलेखों का संग्रह प्रकाशाधीन है।
मेरा प्रयास यही रहता है की मैं "स्वान्तः सुखाय" ही लिखूं एवं अपनी लेखनी को ईश्वर का प्रसाद मान कर ग्रहण करूं। जो भी लिखूं, मन से लिखूं एवं वह सीधे पाठकों के मन तक पहुंचे। तो प्रस्तुत है ब्लॉग के महासागर में बूँद समान मेरा एक छोटा सा ब्लॉग (आयाम)

मैं खुश हूँ एक बूँद बनकर ........

बूँद में क्षमता है , सागर का निर्माण करे।

बूँद-बूँद से ही तो सागर बनते हैं,

सृष्टि के निर्माण की सहभागी,

मैं खुश हूँ एक बूँद बनकर॥



रेनू "राजवंशी" गुप्ता
nishved@yahoo.com
renurajvanshigupta@gmail.com



6 comments:

  1. "आरम्भ में मेरी लेखनी मूलतः कवितांश ही रही" - इस आशा के साथ कि आपकी कवितायेँ पढने को मिलेंगे - हार्दिक शुभकामनायें

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  2. Aur padhne ka intezaar rahega!

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  3. swagat hai.........ek boond me kshamt hai sagar banne ki............nice....

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  4. shubhkamnao ke sath swagat hai hindi blog jagat me

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  5. वन्देमातरम
    आपके लेखन का प्रारंभ "कैसे हैं वो?" से सतत ज़ारी है। प्रतीक्षा रहेगी आपके लेखों को पड़ने की। खासतौर पर संस्मरण, क्योंकि उनमे न केवल आपको जानने का अवसर होगा बल्कि हमें विदेश भ्रमण करने को भी मिलेगा। हाँ, क्या संस्मरण चरित्र प्रधान हैं या फिर यात्रा प्रधान या फिर दोनों का आनंद उसमे समाया है? जिज्ञासा है, शीघ्र शमन करें। बाकी विधाओं का भी है इंतज़ार...
    — आपका एक प्रतीक्षारत पाठक
    प्रतुल

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