Friday, June 10, 2011

दिल्ली पर नजर रखने वालों पिंडी को संभालो तो जानो

१९६५ के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय यह गीत साप्ताहिक हिंदुस्तान में प्रकाशित हुआ था |
पाकिस्तान का सच १९६५ में एवं २०११ में एक ही है


कुछ लोग सुना है दिल्ली में आने की तमन्ना करते हैं ,
कुछ चूहे मिलकर बिल्ली को खाने की तमन्ना करते हैं |
दिल्ली पर नजर रखने वालों पिंडी को संभालो तो जानो ,
लाहौर की हद से एक कदम भी आगे बढ़ा लो तो जानो |
सेबरजेट पर आने वालों क्या जोर हमारा देख लिया ,
सरगोधा और चकलाला पर नेटों का नजारा देख लिया |
दावा है अयूब भुट्टो का वो लड़ेंगे एक हजार वर्ष ,
डालर के सहारे जी लेंगे एक दो नहीं तो चार वर्ष |
गले में जो हड्डी अटकी है उसको निकालो तो जाने ,
दिल्ली पर नजर रखने वालों पिंडी को संभालो तो जानो ||
मुल्तान की गर्मी खा खाकर कश्मीर की हसरत करते हैं ,
कश्मीर के गम में ये बेचारे ना जीते हैं ना मरते हें |
कश्मीर का हर मुस्लिम बच्चा भारत का राज दुलारा है ,
हर जाति का हर महजब का ये हिंदुस्तान हमारा है |
तुम मुस्लिम के सिवा किसी गैर को सीने से लगा लो तो जानो |
दिल्ली पर नजर रखने वालों पिंडी को संभालो तो जानो ||
तुम गेहूं की रोटी खाते हो वही रोटी हम भी खाते हैं ,
फिर हम दोनों में क्या फर्क है यह आज तुम्हें बतलाते हैं |
कल तक हम दोनों एक ही थे मगर यह बात तुम भूल गए ,
गैरों ने पिला दी कुछ ऐसी तुम झूठे नशे में भूल गए |
हम खड़े हैं अपने पावों पर तुम गैरों के कंधे चढ़ते हो ,
नफरत है पड़ोसी से बेगानों के पाँव पड़ते हो |
आँखों से विदेशी परदे को दो रोज हटा लो तो जानो ,
दिल्ली पर नजर रखने वालों पिंडी को संभालो तो जानो ||


प्रस्तुति
रेनू राजवंशी गुप्ता

1 comment:

  1. जब मांग के पैटन लाए थे, हिम्मत भी कहीं से ले आते।
    होता जो रगों में गर्म लहू, दम भर में न ठंडे पड़ जाते।

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