लिखते रहे हम औरों की कहानी ,
अपनी कहानी हमसे लिखी नहीं गई
लिखनी भी चाही यदि अपनी कहानी ,
तो सफ़ेद स्याही से लिखी ,
जो हमारे सिवा किसी ओर से पढी नहीं गई
लिखते रहे हम औरों की कहानी ,,,,,,
सोचा था समा लेंगे सबके आंसू ,
दिल के दरिया में
परन्तु आंसूयों का बहा ऐसा समुन्दर ,
कि अपनी नैय्या भी हमसे किनारे लगाईं नहीं गई
लिखते रहे हम औरों की कहानी ,,,,,,,,,,,,
परेशानियां कुछ ख़ास नहीं थी जीवन में ,
परन्तु हमने ओढी चिंतायों की ऐसी मोटी चादर ,
कि खुली हवा मैं हमसे श्वास ली नहीं गई
लिखते रहे हम औरों की कहानी ,,,,
जीने की कला कुछ कठिन तो नहीं थी ,
परुन्तु हम यह कला सीखी नहीं गई
लिखते रहे हम औरों की कहानी ,,,
लाखों करोड़ों सपनों से ,
शुरू की थी हमने जिन्दगी
परन्तु जीवन हुआ वो बेहिसाब ,
एक पाई भी हमसे गिनी नहीं गई
लिखते रहे हम औरों की कहानी ,,,,,
कितने ही काम अधूरे पड़े हैं जीवन में ,
अधूरी कहानियों को मिलाकर ,
एक पूरी कहानी बनाती नहीं
लिखते रहे हम औरों की कहानी ,,,,
रेनू राजवंशी गुप्ता
renurajvanshigupta@gmail.com
Tuesday, November 1, 2011
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