Sunday, June 19, 2011

नारी पहचान

नारी पहचान

यदि तुम हो शक्ति- दुर्गा भवानी ,
अपनी शक्ति की पहचान करो |

यदि तुम हो लक्ष्मी -सरस्वति -पार्वती,
अपनी शक्ति का संधान करो |

ठहरा पानी ....बरसाती नदी ....या हो गंगा की धारा ......
क्या हो तुम ?
अपनी सही पहचान करो ,
अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त करो ||

पहले तुम थीं ठहरा पानी ,,,,,,,
अपनी ही धुरी पर स्थिर ,
ठहरे पानी में दल दल धंसती ,
ना बहती ,,,ना लहलहाती ,
चुप मौन सब सह जाती ,
अपने ही पानी में समा जाती |
कैसे आतीं ,,,,कैसे रहतीं ?
कैसे जीतीं ,,,कैसे मरतीं ?
क्या सोचती ,,,क्या देखती ?
क्या खोती,,,,,क्या पाती ?
दुनिया यह नहीं जान पाती ,
काल की गति में खो जातीं ,
अपनी सही पहचान ना बना पातीं |

जब से बनी हो तुम बरसाती नदी ,,,
अपना ही घर तोड़ने में लगी हो ,
आवेग में परिवार - समाज उखाड़ने में लगी हो ,
ना है तुम्हें किनारों का भान ,
ना है अपनी मर्यादा का मान ,
अपने मद में सबको निगलने चली हो |
मुक्ति के मोह में ,
अपनी गहराई गवां दी |
स्वार्थ के आवेश में ,
किनारों की चौड़ाई मिटा दी |
तुम क्या प्यास बुझाओगी किसी की ,
बरसाती नदी का मैला पानी ,
तुम तो स्वयं घट घट प्यासी घूम रही हो |
झूठी पहचान ओढ़ रही हो ,
सही पहचान खो रही हो |

भागीरथी - जान्हवी ,,,,,तुम बनो गंगा की धारा,
तुम रहो इतनी गहरी कि ,
पत्थर भी तैरने लगें |
तुम बनो इतनी चौड़ी कि ,
पाट पाट को निहारने लगे |
तुम बनो इतनी पावन कि ,
नदी नाले तुममें मिलकर गंगा जल बनने लगें |

तुम रहो अनुशासित अपना कूल ना तोड़ो ,
तुम रहो मर्यादित अपना घर ना छोड़ो ,
तुम तो हो प्राणदायिनी ,
अपनी सही पहचान स्वयं बनों |

ना बनो तुम ठहरा पानी ,
ना बनो तुम बरसाती नदी ,
जान्हवी - भागीरथी ,
तुम गंगा की धार बनो
अपना मान सम्मान बनो ,
अपनी सही पहचान बनो |

यदि तुम हो शक्ति -दुर्गा भवानी ,
अपनी शक्ति की पहचान करो |
यदि तुम हो लक्ष्मी सरस्वति -पार्वती,
अपनी शक्ति का संधान करो ||

रेनू राजवंशी गुप्ता
nishved@yahoo .com
USA

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