Monday, May 31, 2010

'सर्वोच न्यायलय का शर्मनाक कथन'

'सर्वोच न्यायलय का शर्मनाक कथन'

पिछले दिनों भारत के 'सर्वोच न्यायलय ने यह कानून पास किया कि विवाहेतर स्त्री-पुरुष के सेक्स संबंधो एवं उनके साथ साथ रहने को अपराध नहीं माना जायेगा, एवं इनके संबंधो से जन्मी संतान को अवैध नहीं माना जायेगा। मुझे इस कानून में कोई रूचि थी। यह तो व्यक्तिगत रूचि का विषय है कि भारतीय क्या स्वयं को विवाह कि परिधि से बाहर निकलकर उन्मुक्त जीवन जीने के परिणाम भोगने के लिए तैयार है...या नहीं ??
अच्छा हो भारतीय अमेरिका या यूरोपियन समाज के ध्वस्त होते पारिवारिक ढांचे को देख ले।

परन्तु सर्वोच न्यायलय ने अपने निर्णय मे एक ऐसा वक्तव्य दिया जिसे पढ़कर मैं क्रोध एवं अपमान से तिलमिला उठी. रिपोर्ट में कथन था "शास्त्रों -पुराणों के अनुसार भगवान् श्री कृष्ण एवं श्री राधा भी साथ साथ रहते थे" यानि सुप्रीम कोर्ट अपने निर्णय को न्याय संगत बनाने के लिए हिंदी धर्म-शास्त्रों को पतित कर रहे हैं. जनता के सामने झूठे लज्जापूर्ण वक्तव्य दे रहा है। इस निर्णय को घोषित करने वालों मे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश श्री के.जी बालकृष्नन के साथ न्यायधीश श्री दीपक वर्मा एवं श्री बी.एस चौहान सम्मलित थे. सुप्रीम कोर्ट भारतीय कानून व्यवस्था की सर्वोच शाखा है एवं उसके न्यायधीश सबसे अधिक योग्य,शिक्षित एवं योग्य माने जाते है। इनके कथन एवं निर्णय लाखों लोगों को प्रभावित करते हैं इनके द्वारा लिखा गया ऐसा घ्रणित एवं गैरजिम्मेदाराना एवं घ्रणित कथन है.

श्री कृष्ण एवं श्री राधा रानी की भारत ही नहीं पूरे विश्व में पूजा की जाती है। प्रत्येक देश में श्री कृष्ण एवं श्री राधा रानी के भक्त मिल जायेंगे,इनके मंदिर मिल जाएँगे। जो भी व्यक्ति हिन्दू धर्म को जानना चाहता है वह श्री कृष्ण एवं श्री राधा रानी का जीवन चरित अवश्य पढता है एवं इनके दिव्य-अलौकिक प्रेम एवं भक्ति को अवश्य अंगीकार करना चाहता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार गोपी-भाव की भक्ति सर्वोच्च कोटि की शुद्ध भक्ति मानी जाती है बृज की गोपियाँ साधारण ग्रामीण महिलाएं नहीं है ये ऋषि मुनि एवं साधक हैं। श्री राधा रानी जी श्री कृष्ण की अहलादिनी शक्ति है इनके सम्बन्ध नित्य, सनातन एवं शाश्वत है, इनका प्रेम दिव्य एवं पारलौकिक है, इनके सम्बन्ध को मानवीय संबंधो की सीमाओं मे नहीं बांधा जा सकता हैi श्री कृष्ण स्वयं परमानन्द है, योग योगेश्वर है एवं सचिदानंद है एवं श्री राधा रानी इनकी शक्ति है। वास्तव मे दोनों एक ही है इसलिए इनकी युगल छवि भक्तो के ह्रदय मे रहती है। ऐसे संबंधो को मानवीय कहना ही पाप है, मैं भारत के इन न्यायधीशो से पूछना चाहती हूँ कि उन्होंने श्री कृष्ण एवं श्री राधा रानी के दिव्य संबंधो के स्वरुप को पहचाना है, क्या उन्होंने श्रीमद भगवत गीता एवं श्रीमद भागवद महापुराण का अध्यन किया है? तो किस आधार पर उनकी कलम सर्वोच न्यायलय कि पीठ पर बैठकर ऐसे शर्मनाक व्यक्तव्य लिख सकती है।
हमारे न्यायधीश यदि अज्ञान या मोह वश इन्हें सामान्य स्त्री पुरुष भी मानें तो भी कोई शास्त्र या प्रमाणिक ग्रन्थ इस तथ्य कि पुष्टि नहीं करता है कि श्री कृष्ण एबं श्री राधा रानी एक घर मे साथ साथ रहते थे। सबसे प्रमुख तथ्य यह है कि श्री कृष्ण ने चौदह वर्ष की आयु में बृज छोड़ दिया एवं कभी वापस लौटकर नहीं आये।
यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि इस धरा की संतानों को अपने देश के इतिहास ,धर्म एवं संस्कृति का ज्ञान नहीं है। भारतीय उच्च शिक्षा प्राप्त करते है,बड़ी बड़ी डिग्री प्राप्त करते है अन्य देशों का इतिहास, राजनीति,धर्म एवं संस्कृति जानने की इच्छा रखते है। परन्तु अपने बारे मे जानने की जिज्ञासा नहीं है। अपने देश के इतिहास ,धर्म एवं संस्कृति के प्रति ये इतने संवेदनहीन हो जाते है कि उसका अपमान करने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते है।
व्यक्तिगत स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति कि सोच कुछ भी हो सकती है.... परन्तु शासन या न्यायल्य कि पीठ पर आसीन होकर एसे कथन लिखना या घोषित करना स्वयं मे एक अपराध है।

सर्वोच न्यायलय के न्यायधीश श्री बालकृष्नन को, श्री दीपक वर्मा एवं श्री चौहान को हिन्दू समाज से क्षमा याचना करनी चाहिए एवं इस तथ्य को तुरंत सर्वोच न्यायलय कि रिपोर्ट में से निकल देना चहिये।
अंत में सर्वोच न्यायलय के न्यायधीश श्री बालकृष्नन का नाम उनके माता पिता ने श्री भगवान कृष्ण के नाम पैर ही रखा होगा।

रेनू 'राजवंशी' गुप्ता
सिनसिनाटी, ओहायो, अमेरिका

2 comments:

  1. नियोग से संतानोत्पत्ति, गन्धर्व विवाह, मदनोत्सव, पुंसवन संस्कार, गर्भाधान संस्कार जैसे विषयों पर बहस करने से कतराते रहें क्यों कि ये किसी की व्यक्तिगत रुचि के विषय हैं। व्यक्तिगत रुचियों में विविधता के कारण ही मतभेद होते हैं और न्यायालय की शरण में जाना होता है जाने अंजाने ये व्यक्तिगत प्रसंग सामाजिक बहस का मुद्दा बन जाते हैं। मजबूरन हमें इन विषयों में रुचि न होते हुए भी सामूहिक निर्णयों में भागीदारी करनी होती है। न्यायालय समाज की समुह चेतना का प्रतिनिधि है उसने अपनी टिप्पणी से राधा कृष्ण का अपमान किया है या वर्तमान युवा पीढ़ि को राधा कृष्ण का दर्जा पाने के लिए प्रेरित किया है यह भी व्यक्तिगत राय की बात हो जाती है। पश्चिमी अन्धानुकरण के परिणामों की तरफ आपका इशारा समझ में आता है पर विकास की धारा समाज को किस दिशा में ले जा रही है इसका विस्तृत सन्दर्भों में आकलन किया जाना चाहिए। हमारे एक जीवन के संस्कारों का खण्डन होते देखने मात्र से आहत होना ठीक नही है। फिर जिस योग योगेश्वर की सत्ता के होते हुए भी अदालत कोई टिप्पणी कर रही है तो उस योगेश्वर की मर्जी के बिना तो ऐसा हो नही सकता। क्या हम उसकी इच्छा को चुनौती दे रहे हैं?

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